देवी सती का जन्म राजा दक्ष की बेटी के रुप में होता है। राजा दक्ष को भगवान शिव अत्यधिक अप्रिय थे।
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आप चाहें तो निराहार रहकर इस व्रत को कर सकते हैं। अगर समर्थ नहीं हो तो आप एक समय फलाहार कर सकते हैं।
इस व्रत में अन्न का सेवन नहीं किया जाता है।
कोकिला व्रत की कहानी का संबंध शिव पुराण में भी प्राप्त होता है। कथा इस प्रकार है ब्रह्माजी के मानस पुत्र दक्ष के घर देवी get more info सती का जन्म होता है। दक्ष विष्णु का भक्त थे और भगवान शिव से द्वेष रखते थे। जब बात सती के विवाह की होती है, तब राजा दक्ष कभी भी सती का संबंध भगवान शिव से जोड़ना नहीं चाहते थे। राजा दक्ष के मना करने पर भी सती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया था। पुत्री सती के इस कार्य से दक्ष इतना क्रोधित होते हैं कि वह उससे अपने सभी संबंध तोड़ लेते हैं। कुछ समय बाद राजा दक्ष शिवजी का अपमान करने हेतु एक महायज्ञ का आयोजन करते हैं। उसमें दक्ष ने अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था।
ऐसे में जब देवी सती को इस बात का पता चलता है कि उनके पिता दक्ष ने सभी को बुलाया लेकिन अपनी पुत्री को नहीं। तब सती से यह बात सहन न हो पाई। सती ने शिव से आज्ञा मांगी कि वे भी अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहतीं हैं। शिव ने सती से कहा कि बिना बुलाए जाना उचित नहीं होगा, फिर चाहें वह उनके पिता का घर ही क्यों न हो।
भजन: शिव शंकर को जिसने पूजा उसका ही उद्धार हुआ
विश्वास है कि इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
यह व्रत भौम दोष से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होता है, जो विवाह में बाधा डालता है।
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पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
ஶ்ரீ க³ணேஶ மூலமந்த்ரபத³மாலா ஸ்தோத்ரம்
राजा दक्ष एक बार यज्ञ का आयोजन करते हैं। इस यज्ञ में वह सभी लोगों को आमंत्रित करते हैं ब्रह्मा, विष्णु व सभी देवी देवताओं को आमंत्रण मिलता है किंतु भगवान शिव को नहीं बुलाया जाता है।
ஶ்ரீ லம்போ³த³ர ஸ்தோத்ரம் (க்ரோதா⁴ஸுர க்ருதம்)